Monday, June 14, 2010

युवा कवियत्री नेहा



हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी इंसा जैसा हैं
क्या तू भी हंसता रोता है
क्या तू भी स्वार्थी होता है
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी गुस्सा होता है
क्या तुझको भी दुःख होता है।

फिर जब जब बरखा आती है
क्यों मुझको ऐसा लगता हैं
जैसे बदली की आंखो से
तू चुपके चुपके रोता है
क्या तुझको भी दुःख होता है
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी इंसा जैसा हैं

जब जब बसंत लेकर आता
मधुकर की मधुर सुगंध हवा में
तब तब क्यों ऐसा लगता है
तू हर डाली पर मुस्काता है
बनकर कलिया और फूल
तू ही तो है जो बाग महकाता है
क्या तू भी हंसता रोता है
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी इंसा जैसा हैं

पतझड़ में तू इंसानो सा
स्वार्थी क्यो हो जाता है
क्यों नये पत्र पुष्पों की चाह में
पुरानों को ठुकराता है
जैसे मनुष्य तोड देता है
पुराने रिश्ते नयों की चाह में
छोड देता है मां बाप को
बीवी बच्चों के लिए
उन मां बाप को जिन्होने उन्हे
अपने लहु से सींचा
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी स्वार्थी होता है
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी इंसा जैसा हैं

गर्मी में क्यों होकर गुस्सा
तू तपता है आग उगलता हैं
क्या मासूमों को जला सता
उनको तकलीफे देता हैं
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी गुस्सा होता है
हे ईश्वर एक बात बता
क्या तू भी इंसा जैसा हैं

जब शीत ऋतु आती है लेकर
ठंडी ठंडी सी सख्त हवा
तब जाने क्यो लगता है
जैसे तू भी तो सोता है
भरी दोपहरी ओढ के कंबल
रूई के बादलों का
और उंघता रहता है दिनभर
आलस्य भरे मीठे दिन में

हे ईश्वर एक बात बता
क्या सच में ऐसा होता है
या फिर नजरों का धोखा हैं
क्या तू भी इंसा जैसा है
या हमको ही भ्रम होता है।
" नेहा"


कवि परिचय :-
उक़्त कवियत्री स्नातक द्वितिय वर्ष की छात्रा है, एवं राजस्थान राज्य के पाली जिले के रानी नामक कस्बे में रहती हैं, ये कवियत्री श्री लीलादेवी पारसमल संचेती कन्या महाविध्यालय की छात्रा है, साहित्य एवम संगीत में कवियत्री का रूझान काफ़ी गहरा हैं,अधिक जानकारी के लिये अथवा सम्पर्क करने के लिये यहा कमेंट देवें जो कवियत्री तक पहुंच जायेंगे!

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